उत्तराखंड के जोशीमठ की त्रासदी के बीच हिमाचल प्रदेश को लेकर भी एक बार फिर भू-गर्भ वैज्ञानिक चिंता में पड़ गए हैं। क्षमता से अधिक भवन निर्माण के कारण प्रदेश की राजधानी शिमला, मैक्लोडगंज और धर्मशाला में भूमिगत चट्टानें लगातार दरक रही हैं। भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यदि समय रहते अनियंत्रित और अवैज्ञानिक निर्माण नहीं रोका, तो देर-सवेर यहां भी जोशीमठ जैसा हाल होगा।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी धर्मशाला के भू विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. अंबरीश महाजन ने बताया कि धर्मशाला, मैक्लोडगंज और राजधानी शिमला में क्षमता से अधिक भवन निर्माण हो रहा है। भौगोलिक परिस्थितियों को बिना ध्यान में रखे ऊंची इमारतों का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन पानी की निकासी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। अवरोधों के कारण पानी रिसकर जमीन में जाकर मिट्टी को कमजोर कर रहा है, जिससे पहाड़ों के दरकने का खतरा बढ़ रहा है।
डॉ. महाजन ने बताया कि जोशीमठ का डरावना संकट एक दिन में नहीं आया। इसकी नींव बहुत पहले से पहाड़ों पर अवैज्ञानिक ढंग से क्षमता से अधिक भवन निर्माण के जरिये रखी जा रही थी। जिस व्यक्ति में दस किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता है, उस पर यदि 50 किलोग्राम भार लाद दिया जाए, तो उसे संभाल न पाने की स्थिति में उसका बैठना निश्चित है। यही अब पहाड़ों पर हो रहा है। संवाद
बोह घाटी-सोलहदा क्षेत्र की दलदली-रेतीली मिट्टी बेहद संवेदनशील
जिला कांगड़ा में भूस्खलन की दृष्टि से बोह घाटी, सोहलदा, कोटला, त्रिलोकपुर और भाली क्षेत्र संवेदनशील हैं। यहां पेड़-पौधे छोटी जड़ों वाले हैं। यहां की मिट्टी दलदली और रेतीली है। इसी कारण यहां भूस्खलन होते रहते हैं। यहां गहरी जड़ों वाले पौधे लगाने पड़ेंगे। बता दें कि शाहपुर के रुलेहड़ गांव में 12 जुलाई, 2020 को पहाड़ी से आए मलबे में दबने से दस लोगों की जान चली गई थी।
नूरपुर में सात घरों में आ गई थीं दरारें, सड़कें भी धंसीं
अगस्त 2022 में कांगड़ा जिले में नूरपुर की पंचायत खेल के बरियारा में कुदरत के कहर के चलते सात रिहायशी मकान क्षतिग्रस्त हो गए। इसी दौरान मकानों सहित जमीन में दरारें पड़ गईं। लोगों को मकान खाली करने पड़े थे।
पर्यटन विकास के लिए बहुमंजिला भवनों के बजाय हट्स बनें
डॉ. अंबरीश महाजन ने बताया कि मैक्लोडगंज स्थित दलाईलामा मंदिर और इसके आसपास जमीन के अंदर क्ले और मड स्टोन हैं। लिहाजा भूस्खलन की दृष्टि से यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। खड़ा डंडा रोड सहित अन्य मार्गों पर जगह-जगह जमीन धंस रही है। ऐसे में यहां बहुमंजिला निर्माण से बचना चाहिए। सिंचाई और पेयजल परियोजना की पाइपलाइनों में लीकेज बंद दूर करनी होगी। यहां बहुमंजिला भवनों के बजाय हट्स के माध्यम से पर्यटन को विकसित करना होगा।