सुबह से शाम तक मोबाइल से हो रही पढ़ाई, नेत्र विशेषज्ञों की चेतावनी, छोटे बच्चों का मोबाइल देखना घातक
रामपुर बुशहर-ऑनलाइन पढ़ाई का चक्कर आपके लाडले की आंखों की रोशनी को छीन सकता है। ऐसे में आजकल जिस तरह से मोबाइल ऐप से अधिकतर स्कूलों में पढ़ाई का क्रम चला है वह आने वाले दिनों में आपके लाडले की आंखों में मोटा चश्मा चढ़ा सकता है। इतना ही नहीं नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि 14 वर्ष से अधिक के बच्चों को भी कुछ ऐतिहात के साथ मोबाइल देखना चाहिए। जबकि 14 वर्ष के नीचे के बच्चों को मोबाईल देखना घातक साबित हो सकता है। बताते चले कि जबसे प्रदेश को कोरोना के खौफ ने अपने साए में लिया है तबसे स्कूल बंद चल रहे है। ऐसे में शिक्षा विभाग सहित निजी स्कूलों ने बच्चों को पढ़ाने के लिए आनलाइन का जरीया चुना है। जिसका विकल्प मोबाइल को चुना गया है। ऐसे में जो उपकरण कल तक स्कूल में पूरी तरह से प्रतिबंधित था। वहीं उपकरण आज घरों में बच्चों की पढ़ाई का जरीया बना हुआ है। ऐसे में जो अभिभावक कल तक अपने बच्चों को मोबाइल चलाने के लिए डांटते रहते थे वहीं उन्हें मोबाइल देने को मजबूर है। मोबाइल से बच्चे पढ़ तो रहे है लेकिन इसका दुष्प्रभाव काफी खतरनाक हो सकता है। सुबह से शाम तक मोबाईल पर चिपके रहना बच्चों की आंखों की रोशनी पर काफी नकारात्मक असर डाल सकता है। नेत्र विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि 14 वर्ष से अधिक से बच्चे तीन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए मोबाइल प्रयोग में ला सकते है। जिसमें मोबाइल को दूर से देखना, सही रोशनी में देखना, लेट कर न देखना शामिल है। जबकि 14 वर्ष से कम के बच्चों को मोबाइल देखना घातक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाईल से न केवल आंखों पर असर पड़ता है बल्कि मोबाइल से निकलने वाली रेडियेशन भी घातक होती है। ये ही कारण है कि लॉकडाऊन तो कभी न कभी हट ही जाएगा लेकिन ये ऑनलाइन पढ़ाई कहीं आपके लाडले की आंखों की रोशनी न कम कर दें।
इन बिंदुओं का रखना होगा ध्यान
14 वर्ष से अधिक की उम्र के बच्चें ही मोबाइल इस्तेमाल करें।
मोबाइल को दूर से देखें।
मोबाइल को देखते समय कमरे में उचित रोशनी होनी चाहिए अंधेरे में व कम रोशनी में मोबाइल न देखें।
मोबाइल को लेटकर न देखें।
छोटे बच्चों को दिए गए होमवर्क को अभिभावक खुद पन्ने पर लिखकर बच्चों को दें।
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