नेरवा-लॉकडाउन के दौरान रोजी-रोटी छिनने के बावजूद उपमंडल चौपाल के करीब 200 ढाबा संचालकों के कोरोना की लड़ाई में हौसले कम नहीं हुए हैं। उपमंडल चौपाल में चंबी से लेकर कुपवी एवं कई अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में तकरीबन 200 छोटे-बड़े ढाबे हैं। इनमें से रोज कमा कर खाने वाले करीब 90 फीसदी ढाबा संचालक हैं। ये सभी ढाबे 22 मार्च जनता कर्फ्यू से लेकर रविवार को तीन हफ्ते बीत जाने तक पूरी तरह बंद पड़े हैं। कुछ ऐसे बड़े ढाबे भी हैं जिन पर कई वर्कर्ज के वेतन और किराए का बोझ आन पड़ा है। इन सभी ढाबा संचालकों को जहां अपनी रोजी -रोटी की चिंता सताए जा रही है, वहीं सिर पर चढ़ते वर्कर्ज के वेतन और ढाबों के किराए ने इनकी चिंताएं आसमान में पहुंचा दी हैं। इस सबके बावजूद फूड बिजनेस से जुड़ा यह वर्ग कोरोना की लड़ाई में अपनी और अपने परिवार की चिंता भुला कर अपना बराबर सहयोग दे रहा है। ढाबा संचालक संघ नेरवा के अध्यक्ष बलदेव तंगड़ाईक ने कहा कि सभी ढाबा संचालक संयम से काम लें और विश्व व्यापी इस महामारी से लड़ाई में अपना सहयोग दें। उन्होंने कहा कि यदि इसके लिए भविष्य में कुछ दिन और भी लॉकडाउन रहना पड़ा तो ढाबा संचालक संघ नेरवा इसका समर्थन करेगा। उन्होंने छोटे ढाबा संचालकों से आग्रह किया है कि यदि किसी के पास खाने-पीने अथवा आवश्यक वस्तुओं की कमी हो तो व्यापार मंडल नेरवा को सूचित करें। ऐसे व्यक्ति एवं उसके परिवार को प्रशासन से हर संभव मदद मुहैया करवाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने सरकार से मांग की है कि स्थिति सामान्य होने पर व्यावसायिक गैस सिलेंडर के दाम कम किए जाएं एवं ढाबा मालिकों को सरकार की तरफ से राहत प्रदान करने के लिए कदम उठाए जाएं।
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