लॉकडाउन…और शिमला गुच्छी का दीवाना

शिमला-शिमला में लॉकडाउन के बीच लोग गुच्छी ढूंढने जंगलों में जा रहे हैं। कर्फ्यू में जो ढील दी जाती है उस समय लोग अपने घरों से निकल कर जंगलों की ओर निकल रहे हैं। वहीं, हर साल की तरह इस साल गुच्छी खरीददारों को काफी नुकसान हो रहा है। लोकडाउन के चलते गुच्छी व्यापारियों पर भी मार पड़ी है। जंगल में मिलने वाली गुच्छी अच्छे भावों में बेची जाती थी, जिसका इस्तेमाल न केवल खाने के तौर पर बल्कि यह जड़ी-बूटी के तौर पर आयुर्वेदिक दवाओं के लिए आवश्यक रहती है। वहीं, हर साल की तरह इस साल इसकी पैदावार में काफी इजाफा आंका जा रहा है। यह प्राकृतिक तरीके से तैयार होती है। मार्केट में गुच्छी चार से पांच हजार रुपए प्रति किलो बिक रही है। गुच्छी मशरूम का कोई बीज नहीं होता है। यह प्राकृतिक तरीके से तैयार होती है। प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में देवदार, बान और कैल आदि के पेड़ों के नीचे गुच्छी मिल रही है। शिमला, चंबा, सिरमौर, सोलन, चंबा आदि ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोग जंगलों में निकलकर इसे ढूंढ रहे हैं। कई लोगों को अपने खेतों में भी गुच्छी मिल रही है। गुच्छी शिमला के गंज शिमला बाजार के अलावा प्रदेश के अन्य बाजारों में भी बिकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई लोग गुच्छी खरीदते हैं। शिमला के स्थानीय निवासी राकेश शर्मा ने बताया कि माना जाता है कि बिजली कड़कने से गुच्छी की पैदावार होती है। इसके लिए आजकल का मौसम उपयुक्त होता है। वहीं अगर कहीं दिल की धड़कनें तेज हैं और दिल के रोग ने आपको घेर लिया है तो गुच्छी का नियमित सेवन राहत दे सकता है। विटामिन बी, डी, सी व के की प्रचूर मात्रा से यह स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। छतरी, टटमोर, डुंघरू या गुच्छी के नाम से विख्यात यह जुड़ी-बूटी औषधीय गुणों से भरपूर है। दुनिया भर में और स्पंज मशरूम के नाम से देशभर में मशहूर गुच्छी की इस बार खासी पैदावार हुई है। इसके कारोबार से जुडे़ लोगों से मिली जानकारी के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस बार गुच्छी का उत्पादन दो से तीन गुना अधिक है। इससे दामों में गिरावट की भी पूरी संभावना है। इस जड़ी-बूटी की कीमत प्रदेश में 10 से 15 हजार रुपए किलो है, जबकि अन्य राज्यों में इसके 25 से 30 हजार रुपए वसूले जाते हैं। इसके लजीज पकवान के शौकीन केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी भरपूर मांग है। कुदरती तौर पर जंगलों में पैदा होने वाली गुच्छी के कई फाइव स्टार होटलों में पकवान बनाए जाते हैं। इसका प्रयोग कई दवाइयां बनाने में भी किया जाता है। लजीज पकवानों में गिनी जाने वाली औषधीय गुणों से भरपूर गुच्छी के नियमित उपयोग से दिल की बीमारियां नहीं होती हैं। दिल के मरीज अगर इसका उपयोग करते हैं तो उन्हें अधिक फायदा होता है।

देश ही नहीं, विदेशों में भी ज्यादा मांग

प्राकृ तिक रूप से जंगलों में उगने वाली गुच्छी फरवरी से अप्रैल के बीच मिलती है। बड़ी-बड़ी कंपनियां और होटल इसे हाथों-हाथ खरीद लेते हैं। इस कारण इन इलाकों में रहने वाले लोग जंगलों में डेरा डालकर गुच्छी इकट्ठा करते हैं। वहीं, कंपनियां इनसे 10 से 15 हजार रुपए किलो गुच्छी खरीद लेती हैं, जबकि अन्य राज्यों में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपए किलो है। गुच्छी की देश ही नहीं विदेशों में भी अधिक मांग है। अमेरिका, यूरोप, फ्रांस, इटली व स्विट्जरलैंड के लोग चंबा की गुच्छी को खूब पसंद करते हैं।

गुच्छी में कई औषधीय गुण

पीएम मोदी की भी पसंदीदा गुच्छी में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं। इसमें अद्भुत रोगरोधी क्षमता होती है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी पसंदीदा रही है। वह इसकी सब्जी खाते रहे हैं। जब मोदी वर्ष 1998 से पहले हिमाचल के प्रभारी थे, उसी वक्त से वह इसे पसंद करते हैं। यह शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाती है। यह प्राकृतिक है। इसे आदमी उगा नहीं पाता है। इसकी उपज बहुत कम होती है। ये सब इसके महंगे बिकने के कारण हैं।

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