डोम देवता की भक्ति में डूबा सारा शहर

20 साल बाद शिमला पहुंचे अराध्य देव; रिज पर चोल्टू नृत्य से किया भक्तों ने नमन, बारिश और ओलों पर भारी पड़ी आस्था

शिमला-शिमला के ऐेतिहासिक रिज मैदान पर रविवार को डोम देवता की जातर का आयोजन किया गया। जातर में सैकडों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। मौसम खराब होने के बाबजूद काफी संख्या में लोग देवता साहिब का आशीर्वाद लेने रिज मैदान पहुंचे। इस दौरान रिज मैदान पर चोलटू नृत्य का आयोजन किया गया। शिमला और सोलन जिलों की 18 ठकुराइयों और 22 रियासतों के प्रमुख देवता डोम सन्नाटा गुठाण का जातर नृत्य देखने के लिए दूरदराज से लोग पहुंचे। खास बात तो यह है कि डोम देवता 20 साल बाद शिमला आए हैं। इनका मूल स्थान गुठाण है। साल 1979 से देवता डोम के कारदार मदन लाल वर्मा ने बताया कि परंपरा के तहत इस जातर का आयोजन शिमला के रानी झांसी पार्क में होता था, मगर उक्त स्थल पर इस तरह के आयोजनों पर प्रतिबंध लगने पर यह आयोजन रिज मैदान पर हो रहा है। इस दौरान सारा माहौल भक्तिरस में सरोबर दिखा। जातर में सैकडों की संख्या में भक्तजनों ने भाग लिया। इस दौरान रिज मैदान पर चोलटू नृत्य का आयोजन किया गया। खास बात तो यह है कि डोम देवता 20 साल बाद शिमला आए हैं यही कारण है कि इस मौके पर न केवल शिमलावासी दूरदराज से भी काफी संख्या में लोग पहुंचे। देवता के स्वर्ण जटित प्रतिमाओं से युक्त रथ द्वारा रिज पर नृत्य किया गया, यह दृश्य अपने आप में बेहद मनमोहक था। डोम सन्नाटा देवता गुठाण के प्रमुख कारदार मदन लाल वर्मा  ने बताया कि देवधुन पर यह देवनृत्य पारंपरिक रीति से होने जा रहा है। यह हर 20 साल बाद होता है। इस मौके पर देवता द्वारा तमाम शिमलावासियों को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद  दिया गया।  इस देव परंपरा को निभाने में सहयोग देने के लिए उन्होंने सरकार और जिला प्रशासन का भी धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। उल्लेखनीय है कि डोम सन्नाटा सदियों पहले हिमाचल के इस क्षेत्र के एक प्रख्यात योद्धा थे, जिन्हें देवत्व प्राप्त हुआ। डोम देवता सन्नाटा की जातर रथ-यात्रा 20 वर्षों के बाद इन दिनों निचले हिमाचल के अलावा क्षेत्र की परिक्र मा पर है। यह एक भव्य ऐतिहासिक व प्राचीन पंरपराओं से जुड़ा हुआ देव उत्सव है।

चोल्टू की परंपरा

हिमाचल में देवी-देवताओं के रीति-रिवाजों के साथ लोक कला गहरी जुड़ी है। ऊपरी शिमला में देवी-देवताओं से जुड़ा है चोल्टू नृत्य। इसमें रथनुमा पालकी में बैठाई गई देव प्रतिमाएं नचाई जाती हैं तो इसकी गोलाई में चोल्टू नृत्य होता है। एक खास तरह की पोशाक को चोल्टू कहते हैं। इसके साथ पगड़ी पहनी जाती है। इसे पहनकर देव-कारिंदे ढोल, नगाडों, करनालों और शहनाई के सुरों पर नाचते हैं।

डोम देवता पर लोगों की विशेष आस्था

ठियोग तहसील की ग्राम पंचायत कलींड के गुठाण गांव के देवता डोमेश्वर को लेकर यह मान्यता भी है कि जिस जगह पर देवता जाता है वहां कभी भी अकाल नहीं पड़ता। देवता कमेटी के प्रमुख कारदार मदनलाल वर्मा बताते हैं कि देवता डोम महाराज की जातर की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि रियासती समय में जुन्गा स्थित क्योंठल रियासत के राज परिवार के किसी व्यक्ति पर कोई विपदा आई थी, जिसे डोम देवता महाराज ने दूर किया था तबसे यह परंपरा शुरू हुई और उसके बाद पंरपरा यह बनी कि राज परिवार में टिक्का का जन्म होने पर जातर आयोजित की जाती थी, लेकिन डोम देवता के कलेंणे अधिक होने से इसे पूरा कर पाना संभव न था, जिसके बाद देवता के कारदारों ने जुन्गा के राजा से अनुमति लेकर इस जातर को अब 20 साल बाद करवाने का फैसला लिया।

लोगों ने किए प्रमुख देवता के दर्शन

गौरतलब है कि शिमला और सोलन जिलों की 18 ठकुराइयों और 22 रियासतों के प्रमुख देवता डोम सन्नाटा गुठाण की जातर का आयोजन रविवार को रिज मैदान पर किया गया। डोम सन्नाटा देवता गुठाण के प्रमुख कारदार मदन लाल वर्मा ने बताया कि देवधुन पर यह देवनृत्य पारंपरिक रीति है। यह हर 20 साल बाद होता है।

देव परंपरा कई सालों से

इस मौके पर देवता ने तमाम शिमलावासियों को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद दिया। इस देव परंपरा को निभाने में सहयोग देने के लिए उन्होंने सरकार और जिला प्रशासन का भी धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। उल्लेखनीय है कि डोम सन्नाटा सदियों पहले हिमाचल के इस क्षेत्र के एक प्रख्यात योद्धा थे, जिन्हें देवत्व प्राप्त हुआ।

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