टाइम पर अस्पताल न पहुंचने से जा रही जान

शिमला-प्रदेश के अस्पताल हार्ट अटैक से प्रभावित मात्र 35 फीसदी मरीजांे की ही जान बचा पा रहे हैं। कारण यह है कि ये देरी से अस्पताल पहुंच रहे हैं। वहीं, कई बार इन्हंे लाइफ सेफिंग इंजेक्शन ही नहीं मिल पाता है। आईजीएमसी के कार्डियोलॉजी विभाग ने यह खुलासा किया है। सामने आया है कि प्रदेश के 65 फीसदी मरीज़ जिन्हंे हार्ट अटैक हो जाता है वे समय पर अस्पताल ही नहीं पहुंच पाते हैैं। या यह भी कह सकते हैं कि प्रभावितांे को मालूम ही नहीं होता कि उन्हंे हार्ट अटैक हुआ है या नहीं। यानी जो 35 फीसदी मरीज़ अस्पताल तक हार्ट अटैक के दौरान समय पर पहुंच रहे हैं, उन्हंे ही समय पर जीवन रक्षक दवाएं देकर बचाया जा सका है। इस रिपोर्ट को लेकर यदि प्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने गंभीरता जाहिर नहीं की तो हिमाचल मंे हार्ट अटैक के मरीजा़ंे को बचाना काफी हद तक मुश्किल हो जाएगा। कार्डियोलॉजी की वर्ष 2011 से वर्ष 2017 की हार्ट स्टडी रिपोर्ट मंे चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। स्टडी के मुताबिक वर्ष 2011 से वर्ष 2017 तक हर वर्ष 2500 मरीज़ हार्ट अटैक से प्रभावित प्रदेश के अस्पताल पहुंचे, जिसमंे 220 मरीज़ांे की मौत अस्पताल पहंुचने के बाद हुई, दर्ज की गई है, जो प्रदेश मंे दिल को लेकर बेहद गंभीर विषय है। स्थिति चिंताजनक इसलिए भी है क्यांेकि दिल का दौरा पड़ने वाले प्रभावित को तब ही बचाया जा सकता है यदि प्रभावित मरीज़ को कम से कम छह घंटे के भीतर जीवन रक्षक दवाएं अस्पताल मंे मिल जाएं। अब सवाल तो यह उठ रहा है कि मरीज़ समय पर कैसे अस्पताल पहुंचे, जिस पर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग को गौर करना होगा।

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