ठियोग—पिछले कुछ दिनों से मौसम में आए बदलाव के कारण ऊपरी शिमला भी ठंड की चपेट में आ गया है। सुबह व शाम के समय लोगों को घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है और लोगों ने गर्म कपड़े निकालने शुरू कर दिए हैं। पिछले काफी महीने से बारिश न होने के कारण भी सेब के बागीचों में होने वाले कार्य भी अभी शुरू नहीं हो पाए हैं। हालांकि यदि बारिश होती है और नमी पड़ने से कुछ दिनों बाद किसान बागवान बागीचों में ही नजर आएंगे। बागबानी विशेषज्ञ के अनुसार बागबानों को सेब के तोलिए बनाने की विधि पर विशेष ध्यान उेना चाहिए। बागवानों को सबसे पहला ध्यान यह रखना चाहिए कि तोलिए को हमेशा नमी के समय मे ही करना चाहिए क्यांेकि इससे एक तो पौधों के तोलिए में जड़ों को कम नुकसान होगा तथा इससे पौधें में बीमारियों के पनपने की संभावना कम रहती है। उन्होंने इसकी विधी पर विस्तार से बताते हुए कहा कि पौधे के तने वाले भाग को बिल्कुल न छेड़ा जाए पौधे के आधे भाग की मिटटी को सख्त रखें और तोलिए करते समय इसे बिल्कुल भी नहीं खोदना चाहिए। उन्होंने बागवानों को सलाह देते हुए है कहा कि इस पर कस्सी कुदाली से खोदने पर जड़ों में अनावश्यक जख्म हो जाते हैं और इससे विभिन्न रोगों के कीटाणुओं तथा वूलि एफेड का प्रकोप बढ़ने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त इन भागों से कोमल टहनियां निकल आती है जिन पर वूलिऐफेड का सर्वाधिक आक्रमण होता है। तने में किसी तरह का घास न पनपे इससे कई रोग पैदा हो जाते हैं। विशेषज्ञ का मानना है कि तोलिए में यदि खरपतवार उगने से पौधों में कई बीमारियों के पनपने की संभावना बढ़ जाती है और पौधें का विकास रूक जाता है। पौधें की कलम वाला भाग ग्राफिंटग यूनियन वाला भाग भूमि से उपर होना चाहिए और किसी भी सूरत में दबा न हो। इसके दबने से पौधे के सड़ने तथा कालर गलन रोग का भय निरंतर रहता है। बागवानी अधिकारी बताते हैं कि खाद उरर्वक का प्रयोग फलदार पौधों के बाहरी आधे भाग में ही डालकर करना चाहिए तथा तने के समीप से आधे भाग तक या एक से डेढ मीटर के घेरे में किसी खाद व उवर्रक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। गोबर की खाद तथा उरर्वक को बाहरी आधे भाग में फैलाकर डालें तथा फिर इसे मिटटी की पर्त से ढक दें। पौधें के फैलाव के अनुरूप ही तोलिए के बाहरी किनारों पर नाली बनाकर जल निकासी हो सके। उन्होंने बताया कि तोलिए को हर साल बनाना चाहिए इससे हवा के आदान प्रदान के अलावा अतिरिक्त भूमि की परतों में अदला बदली हो जाती है जिससे जल शोषण शक्ति मिलती है और आवश्यक तत्वों की उपलब्धता पौधों को संभव हो पाती है।
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Courtsey: Divya Himachal
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