छात्र संघ चुनावों पर रहेगा फोकस

शिमला—हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय सहित कालेजों में इस बार छात्र संघ चुनाव की बहाली होगी या नहीं, यह इस साल काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। उधर, प्रदेश के तीनों छात्र संगठनों ने छात्र संगठन चुनाव की बहाली को लेकर इस साल सरकार पर दबाव बनाने की पूरी रणनीति तैयार कर दी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी इस साल अपनी ही सरकार को चुनाव बहाली पर घेरने का निर्णय ले लिया है। जानकारी के अनुसार एबीवीपी 24 जनवरी से छात्र संघ चुनाव पर राज्य स्तरीय बैठक आयोजित कर सरकार के खिलाफ आंदोलन की योजना तैयार करेगी। उधर, एसएफआई ने भी तय कर दिया है कि इस साल हर हालत में प्रदेश विश्वविद्यालय सहित राज्य के 136 कालेजों में एससीए चुनाव को बहाल करने के लिए आंदोलन तीखा किया जाएगा। बताया जा रहा है कि एसएफआई और एबीवीपी का इस साल आंदोलन का सबसे बड़ा मुद्दा छात्र संघ चुनाव की बहाली करना ही होगा। हालांकि एनएसयूआई भी शिक्षण संस्थानों में छात्र संघ चुनाव को लेकर सरकार को ज्ञापन सौंपने के साथ ही सरकार को घेरेगी। प्रदेश के कालेजों और विश्वविद्यालय के तीनों छात्र संगठनों ने साफ किया है कि अगर सरकार ने इस साल भी छात्रों के हित के लिए प्रत्यक्ष रूप से होने वाले चुनाव को बहाल नहीं किया तो ऐसे में छात्रों के फायदे के लिए इस लड़ाई को एकजुट होकर भी लड़ा जाएगा। ऐसे में देखना होगा कि छात्र संघ चुनाव को बहाल करने के लिए पांच सालों से लड़ाई लड़ रहे छात्र नेताओं की इस साल जीत हो पाती है या नहीं। बता दें कि पांच सालों से छात्र संघ चुनाव प्रत्यक्ष रूप से विश्वविद्यालय और कालेजों में नहीं हो पा रहे हैं। पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में प्रदेश में छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध लगाया गया था और अब वर्तमान की बीजेपी सरकार ने भी सत्ता में आने के बाद इस प्रतिबंध को कायम रखा है। पूर्व सरकार के फैसले के अनरूप भाजपा सरकार ने भी इस साल छात्र संघ चुनाव को अप्रत्यक्ष रूप से करवाया। विवि ने मेरिट के आधार पर एचपीयू और इससे संबद्ध कालेजों में एससीए का गठन किया। इस बार विवि के इस फैसले से एक बार फिर से छात्र संगठनों की उम्मीदों पर पानी फिर गया था। यही वजह है कि इस साल चुनाव की लड़ाई को छात्र संगठन साल के पहले माह से लड़ना शुरू कर देंगे। बता दें कि भाजपा सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र संघ चुनाव की बहाली पर एक बार हाई पावर कमेटी का गठन भी किया था। इस कमेटी ने कालेज प्रचार्यों और विवि विभागाध्यक्षों से ली गई राय पर अपनी रिपोर्ट बनाई थी। इस रिपोर्ट में कालेजों के प्राचार्य छात्र संघ चुनाव के पक्ष में नहीं थे। कालेजों के प्राचार्यों ने छात्र संगठनों की वजह से संस्थान में तनावपूर्ण माहौल होने की बात कही थी। वहीं कहा गया था कि अगर चुनाव बहाल होते हैं तो कालेजों सहित विश्वविद्यालय में एक बार फिर माहौल तनावपूर्ण हो जाएगा।

हिंसा बनी चुनावों के बहाल न होने का कारण

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय सहित कालेजो में हिंसक घटनाओं के चलते विवि के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एडीएन वाजपेयी ने वर्ष 2014 से छात्र संघ चुनावों पर प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंध लगाया था। कालेजों और विवि में छात्र संगठनों के बीच हिंसा न हो और माहौल शैक्षणिक बना रहे इसके लिए कांग्रेस सरकार ने इस प्रतिबंध को नहीं हटाया। इस बार भाजपा सरकार ने भी चुनावों को बहाल न करने के पीछे हिंसा और कहीं न कहीं राजनीतिक समीकरणों को भी देखा है, जिसके चलते चुनावों को बहाल नहीं किया गया था। यह साल छात्र संगठनों के लिए कैसा रहेगा यह अहम रहने वाला है।

अगस्त-सितंबर में चुनाव करवाना जरूरी

बता दें कि जुलाई में बेठन वाले नए सत्र के एक माह बाद छात्र संघ चुनाव करवाना विश्वविद्यालय प्रशासन को जरूरी है। अगर तय समय में चुनाव को नहीं करवाया जाता है तो ऐसे में एक साल के लिए चुनाव पर रोक लग जाती है। विश्वविद्यालय को अगस्त के अंत या फिर 15 सिंतबर तक चुनाव प्रक्रिया पूरी करना जरूरी है।

शुरू होंगे आंदोलन

फरवरी से छात्र संघ चुनाव पर आंदोलन शुरू हो जाएंगे। इस बार छात्र संघ चुनाव की बहाली के लिए एसएफआई आमरण अनशन करेगी। इसके अलावा सचिवालय से लेकर विधानसभा का घेराव भी एसफआई कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाएगा।

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