कुसुम्पटी से ‘कमल’ की राह में ‘कांटा’

शिमला -कभी कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ संघर्ष की राह पर उतरने वाली मीरा शर्मा कुसुम्पटी बीजेपी की राह में कांटा बन सकती है। जून 2017 में हुए नगर निगम आम चुनाव से ठीक पहले मीरा शर्मा ने माकपा को अलविदा कर कांग्रेस से हाथ मिलाया था। हालांकि वह सांगटी वार्ड से पार्षद का चुनाव भी जीत गईं। भाजपा नित नगर निगम में उन्होंने गत सितंबर महीने में पार्षद पद से इस्तीफा दिया। अपने निजी कारणों का हवाला देते हुए मीरा शर्मा ने पार्षद पद से त्याग पत्र दे दिया था। फिर दो महीने बाद उन पर राजनीति का बुखार चढ़ा और सत्तासीन पार्टी भाजपा में शामिल हो गईं वो भी उपचुनाव लड़ने के लिए। हैरानी की बात है कि सांगटी वार्ड से पहले इस्तीफा फिर उसी पद के लिए मीरा शर्मा खुद ही उपचुनाव के मैदान में उतर गई हैं। ऐसे में जाहिर है कि मीरा शर्मा ने भविष्य की राजनीति को देखते हुए बीजेपी में शामिल होना लाजिमी समझा। उल्लेखनीय है कि मीरा शर्मा अब तक तीन राजनीतिक दल बदल चुकी हैं। शहर की समस्याओं को उजागर करने वाली माकपा से ही मीरा शर्मा का राजनीतिक सफर शुरू हुआ। माकपा से नगर निगम में पार्षद रहती हुई मीरा शर्मा ने कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ हर मोड़ पर मोर्चा खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मीरा शर्मा 2007 में हुए नगर निगम चुनाव में माकपा से पार्षद जीती थीं। उसके बाद 2012 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इन पांच वर्षों के अंतराल में मीरा शर्मा ने माकपा के लिए जमकर काम किया। पिछले साल जब नगर निगम के आम चुनाव हुए तो कांग्रेस से हाथ मिलाया। ऐसे में अब मीरा शर्मा तीसरी राजनीतिक पार्टी से किस्मत आजमा रही हैं। माकपा, कांग्रेस और अब बीजेपी टिकट से चुनावी मैदान में उतर गई हैं। संागटी वार्ड कुसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है। वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों की राह को ध्यान में रखते हुए मीरा शर्मा भाजपा की हो गई। कुसुम्पटी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी रही विजय ज्योति सेन की राह में मीरा शर्मा रौड़ा भी बन सकती हैं।

जब मैदान में उतरना था तो क्यों दिया इस्तीफा

सवाल उठ रहे हैं कि जब उप चुनावी मैदान में उतरना ही था तो मीरा शर्मा ने पद से इस्तीफा क्यों दिया? सितंबर महीने में उन्होंने यह कह कर पद से इस्तीफा दिया था कि यह मेरा निजी कारण है। पिछले दो महीने से सांगटी वार्ड प्रतिनिधि से मुक्त रहा। जब राज्य निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी तो मीरा शर्मा फिर से मैदान में उतर गईं। ऐसे में जाहिर है कि मीरा शर्मा ने यदि भाजपा ज्वाइन ही करना था तो उन्हें इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं थी। कारण यह है कि नगर निगम चुनाव पार्टी चिन्ह पर नहीं हो रहे हैं। नगर निगम के चुनाव में कोई भी पार्षद किसी को भी समर्थन दे सकता है।

चुनाव आयोग को भी इस्तीफे ने उलझाया

मीरा शर्मा के इस्तीफे ने राज्य निर्वाचन आयोग को भी उलझा कर रख दिया। हालांकि मीरा के इस्तीफे के डेढ़ महीने तक तो राज्य निर्वाचन आयोग को सूचना ही नहीं दी गई। बाद में शहरी विकास विभाग ने आयोग को सूचित किया तो उप चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई। बताया गया कि सांगटी वार्ड में उपचुनाव करवाने के लिए प्रदेश सरकार को कम से कम दो लाख का खर्चा आ सकता है। पोलिंग पार्टी से लेकर पांच बूथों पर स्टाफ की तैनाती और सुरक्षा व्यवस्था पर खर्चा आता है।

 

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Courtsey: Divya Himachal
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