नौणी के वैज्ञानिकों के शोध के बाद तैयार हो रहा नैचुरल से ज्यादा वजन का फ्रूट
नौणी – हरड़ को औषधीय गुणों का खजाना कहा जाता है। हिमाचल के निचले क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से हरड़ होती है, लेकिन इसका साइज कम होने की वजह से इसकी मार्केट वैल्यू कम रहती है। हरड़ का मुरब्बा तैयार करने के लिए आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियां बड़े साइज की हरड़ की डिमांड करती हैं। हरड़ के औषधीय गुणों और इसकी डिमांड को देखते हुए नौणी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक लगातार इस पर शोध करते रहे हैं। सेरीकल्चर विभाग के एचओडी डा. संजीव ठाकुर और नौणी के हमीरपुर स्थित नेरी कालेज में प्रोफेसर एंड हेड डा. कमल शर्मा दो दशक से भी अधिक समय से इस पर कार्य को कर रहे हैं। इन वैज्ञानिकों ने ग्राफ्टिंग विधि से इसके पौधे तैयार किए हैं, जिसके उत्कृष्ट परिणाम आए हैं। नौणी यूनिवर्सिटी के नेरी कालेज से पौधे ले जाने वाले किसानों ने बताया कि इनमें 150 ग्राम तक फ्रूट आया है, जबकि नैचुरल हरड़ का वजन दस से 12 ग्राम तक होता है। इसके पल्प ज्यादा और गुठली छोटी होती है, जिसकी बाजार में अधिक डिमांड है।
बंदरों की भी टेंशन नहीं
किसानों को हरड़ का उत्पादन मुफीद साबित हो सकता है, क्योंकि इसे न तो बंदर खाते हैं और न ही जंगली जानवर नुकसान पहुंचाते हैं। इसमें किसी भी प्रकार के कीटनाशक स्प्रे की आवश्यकता नहीं पड़ती, इसलिए हरड़ के उत्पादन का कोई भी खर्चा नहीं होता। हरड़ के पौधे में हर साल फ्रूट आता है, जिससे किसानों की आय में इजाफा होगा।
सिरमौर में ज्यादा उत्पादन
नौणी यूनिवर्सिटी के नेरी स्थित कालेज में सेरीकल्चर विभाग के प्रोफेसर एंड हेड डा. कमल शर्मा ने बताया कि उन्होंने पहले नॉर्थ इंडिया में पाई जाने वाली हरड़ और उनकी क्वालिटी पर सर्वे किया। हिमाचल में सबसे ज्यादा हरड़ का उत्पादन सिरमौर जिला में होता है। यहां से प्रतिवर्ष करीब तीन सौ ट्रक हरड़ अमृतसर व देश की अन्य मंडियों में जाता है।
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Courtsey: Divya Himachal
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